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लेखनी प्रतियोगिता -12-Mar-2022

जर्जर कश्ती निर्झर  नदियांँ   कुर्ब़त   तूफ़ाँ    दिल  अंजान।

नदियों की कल कल में बर्बर होती  श्रव्य  ध्वनि  नित गान।

विसंगति जीवन    में   ऐसे   भावों   का    दोहन  पग    पग।
दिव्य कमल कुम्हलाए आतुर भौरों के  मन   में     अरमान।
जर्जर कश्ती निर्झर नदियांँ कुर्ब़त तूफ़ाँ    दिल       अंजान।

जुगनू घायल करता मन को    शबनम    नेत्र    जलाती   है।
तब पतंगा ज्योति खोजकर खोया पंख जलज सुख यान।
जर्जर कश्ती  निर्झर  नदियांँ   कुर्ब़त  तूफ़ाँ   दिल   अंजान।

अंतर्मन में  सूरज    डूबा       और    नयन    ने  यह   सागर।
पग तल धरा धंसी है ऐसे मानों नियति  का  यह   अरमान।
जर्जर कश्ती निर्झर नदियाँ कुर्ब़त  तूफ़ाँ    दिल  अंजान।

आज   सदी    का  दोष  बताऊंँ  झूठों  के  हाथों परिजात।
तुलसी कलप के आह भरी है खोकर नित नित निज सम्मान।
जर्जर कश्ती  निर्झर  नदियांँ  कुर्ब़त     तूफ़ाँ  दिल    अंजान।

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9 Comments

Shrishti pandey

14-Mar-2022 12:06 AM

Nice

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Anju Dixit

13-Mar-2022 10:21 PM

बहुत बढ़िया

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Sunanda Aswal

13-Mar-2022 12:53 PM

गजब

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